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जय शंकर प्रसाद की श्रेष्ट कहानिया

री लज्जा से गड़ी जाती थी। एलिस- ( सुकुमारी की ओर देखकर ) अगर जाप बैठेगी, तो मुझे बहुत रंज किशोर सिंह- यों बैठेंगी, हाथ पकड़कर बिठाइए।

 

एलिस सचमुच उठी, पर सुकुमारी एक बार किशोर सिंह की ओर वक्र दृष्टि से

 

होगा।

 

देखकर हँसती हुई पास की बारहदरी में भागकर चली गई, किन्तु एलिस ने पीछा

 

छोड़ा। वह भी वहाँ पहुँची और उसे पकड़ा। सुकुमारी एलिस को देख गिड़गिड़ाकर बोली

 

- क्षमा कीजिए, हम लोग पति के सामने कुर्सी पर नहीं बैठतीं और कुर्सी पर बैठने का अभ्यास ही है। एलिस चुपचाप खड़ी रह गई, वह सोचने लगी कि क्या सचमुच पति के सामने कुर्सी पर बैठना चाहिए। फिर उसने सोचा- वह बेचारी जानती ही नहीं कि कुर्सी पर

 

बैठने में क्या सुख है।

 

चन्दनपुर के जमींदार के यहाँ आश्रय लिए हुए योरोपियन दम्पती सब प्रकार सुख से रहने पर भी सिपाहियों का अत्याचार सुनकर शंकित रहते थे। दयालु किशोर सिंह यद्यपि उन्हें

 

बहुत आश्वासन देते, तो भी कोमल प्रकृति की सुन्दरी एलिस सदा भयभीत रहती थी। दोनों दम्पती कमरे में बैठे हुए यमुना का सुन्दर जल-प्रवाह देख रहे हैं। विचित्रता "यह है कि 'सिगार' मिल सकने के कारण विल्फर्ड साहब सटक के सड़ाके लगा रहे हैं। अभ्यास होने के कारण सटक से उन्हें बड़ी अड़चन पड़ती थी, तिस पर सिपाहियों के अत्याचार का ध्यान उन्हें और भी उद्विग्न किए हुए था, क्योंकि एलिस का भय से पीला

 

मुख उनसे देखा जाता था। इतने में बाहर कोलाहल सुनाई पड़ा। एलिस के मुख से ' माई गॉड' निकल पड़ा और भय से वह मूर्च्छित हो गई। विल्फर्ड और किशोर सिंह ने एलिस को पलंग पर लिटाया और आप बाहर क्या है' सो देखने के लिए चले।

 

विल्फर्ड ने अपनी राइफल हाथ में ली और साथ में जाना चाहा, पर किशोर सिंह ने

 

उन्हें समझाकर बैठाया और आप खूँटी पर लटकती तलवार लेकर बाहर निकल गए। किशोर सिंह बाहर गए, देखा तो पाँच कोस पर जो उनका सुन्दरपुर ग्राम है, उसे सिपाहियों ने लूट लिया और प्रजा दुःखी होकर अपने जमींदार से अपनी दुःख गाथा सुनाने आई है। किशोर सिंह ने सबको आश्वासन दिया और उनके खाने-पीने का प्रबन्ध करने के लिए कर्मचारियों को आज्ञा देकर आप, विल्फर्ड और एलिस को देखने के लिए भीतर चले आए।

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